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Tuesday, April 22, 2008
अम्मा
हमारी सोसायटी में कोई दो साल हुए एक परिवार आकर बसा.पति-पत्नी, ५-७ वर्ष का एक बेटा और एक अदद नौकर.पति-पत्नी दोनों नौकरी पेशा थे, इस कारण कभी कभार लिफ़्ट में ही उनसे हेलो-हाय हो जाती थी.पत्नी का व्यवहार मेरे प्रति काफ़ी सौम्य था, एक आध बार मेरे घर भी चली आयी थी चाय पीने.बेटा अक्सर मेरे पास समय बिताने चला आता था क्यूंकि मेरे पास मछलियां,कुत्ता,कछुआ आदि पालतू सदस्य हैं जो बच्चों को स्वाभाविक रूप से आकर्षित करते हैं. तब हमारे पास तोता भी हुआ करता था.वो अन्य छोटे बच्चों के साथ मेरे घर आकर,खेल कर चला जाता था.बस इतना ही परिचय था हमारा उनसे. एक दिन मैं लिफ़्ट के पास खडी लिफ़्ट का इन्तज़ार कर रही थी कि वो मुझे दिखीं.भरी दुपहरी में ये वृद्धा यहां क्यूं टहल रही है?मेरे मन में स्वाभाविक सवाल उठा. फ़िर उनकी कद काठी पर नज़र गई.वो कुल जमा ४ फ़ुट की, झुकी हुई कमर लिये, क्षीणकाय महिला थी.मोटी, सफ़ेद किन्तु मटमैली साडी पहन रखी थी.पके हुए बाल बेतरतीबी से एक चिन्दी से बांधे हुए थे. आंखों पर बहुत ही मोटा चश्मा चढा था, हाथ में एक बेंतनुमा लकडी थी.बचपन से ही बूढे लोग मुझे भाते हैं, सो मैंने झुक कर उनके पैर छुए और पूछा,"अम्मा, इस वक्त आप यहां क्यूं टहल रही हैं, कौन से फ़्लैट में रहती हैं"? उन्होंने एक फ़्लैट की तरफ़ इशारा किया तो मैं चौंक गई, ये तो वही घर था जहां से वो बच्चा मेरे घर खेलने आता है.कभी किसी ने बताया ही नहीं था कि कोई वृद्धा भी उस घर में रहती है.खैर उस दिन परिचय स्थापित हो गया और मेरी अक्सर उनसे मुलाकात होने लगी किन्तु बडे ही अजीबोगरीब वक्त पर, खास तौर से तब जब कोई बच्चा या बूढा बाहर नहीं निकलता था.एक दिन मैने उनसे जब इसका कारण पूछा तो बोली, "मेरे तीन बेटे हैं, दो बडे बेटे मुझे अपने पास रखने में असमर्थ हैं, क्यूंकि उनके घर छोटे हैं और बच्चे बडे हो गये हैं. य़े मेरा सबसे छोटा बेटा,कम्पनी के दिये बडे घर में रहता है,इसके पास छोटे घर का बहाना नहीं है इसलिये मुझे पास रखना इसकी मजबूरी है, इसका बच्चा भी छोटा है, सो बहू की भी मदद हो जाती है.वैसे घर में फ़ुल टाइम नौकर है, जो सब कुछ सम्भाल लेता है." मैने गौर किया कि वो डरी डरी सी लिफ़्ट के पास देखती रहती हैं, और नीचे भी झांकती रहती है.इस चक्कर में एक दिन उनका बैलेन्स बिगड गया और वो मेरे सामने ही गिरते गिरते बचीं.मैने एकदम से उनको सम्भाल लिया तो उनकी आंखों में आभार के आंसू उमड आये, बोलीं"आज अगर मुझको कुछ हो जाता तो मेरा बाहर निकलना बिलकुल बन्द हो जाता." जब मैने इसका कारण पूछा तो रुन्धे गले से बोली, "हमको तो घर से बाहर निकलना कतई अलाउड नहीं है.हम तो चुपके से तब बाहर निकलते हैं जब नौकर घर से बाहर सामान या सब्ज़ी-भाजी लेने निकला हो, पोता स्कूल में होता है या खेलने गया होता है.हम इसीलिये तो लगातार नीचे झांकते रहते हैं कि कोई आकर हमें बाहर घूमता ना पकड ले.हमारी बहू को हमारा घर से बाहर निकल कर इस उस से बतियाना बिलकुल पसन्द नहीं है. वो सोचती है कि हम सबसे उसकी बुराई करेंगे" मै तो यह सुन कर अवाक रह गई.अब तो उनका दर्द शब्दों में ढल-ढल कर बाहर आ रहा था.कहने लगीं, "दिन में नौकर टीवी नहीं देखने देता, स्कूल से आकर पोता अपने कार्टून चैनल देखता है, शाम को बेटे-बहू की पसन्द से टीवी के कार्यक्रम देखते हैं.मैं कितनी देर तक किताबें पढूं.आंखों में मोतिया उतर आया है,पढने में तकलीफ़ होती है.पेन्शन के पैसे से अलग टीवी लेने की बात उठाई तो घर में भूचाल आ गया,क्यूंकि पेन्शन के पैसे की आर.डी खोल रखी है पोते के नाम.मेरा ही पैसा मेरे काम नहीं आता,कहां जाऊं, किससे कहूं?नौकर भी झूठी सच्ची शिकायतें लगा कर डांट खिलवाता है,बहू रानी को मुझसे ज़्यादा भरोसा नौकर की बात पर है, कहती है, ये चला गया तो घर कौन देखेगा.नौकर मेरे हिस्से का दूध भी खुद पी जाता है,दोपहर के खाने में मोटी मोटी रोटियां पतली दाल के साथ परोस देता है,मुझसे ऐसा खाना चबाया नहीं जाता, दांत जवाब दे रहे हैं.रात का खाना चटपटा होने के कारण नहीं खा पाती.बेटे के घर लौटते ही मुझे अपने कमरे में बन्द हो जाना पडता है,मेहमानों के सामने भी आना मना है.बेटा तुम ये बातें मेरी बहू को मत बता देना, वरना मेरा घर में रहना मुश्किल हो जाएगा." अपना दिल हलका कर के वो धीमे कदमों से अपने घर(?) की ओर लौट गईं,मेरे सामने कई प्रश्न छोड कर.मुझे कतई विश्वास नहीं आ रहा था कि हम जैसे लोगों के बीच ऐसे लोग भी रहते हैं जो जानवर को तो पुचकारते हैं किन्तु बूढे मां-बाप को बोझ समझ कर दुत्कारते हैं.
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