Tuesday, April 15, 2008

गरमी की छुट्टी

अहा !! बडे अरमान थे कि पुपुल के बोर्ड्स की परीक्षा के बाद साल भर की और विषेश तौर पर मार्च के महीने की थकान,अप्रेल के पहले १५ दिनों तक सुस्ता कर बिताएंगे.पैर पसार कर दोपहरिया भर सुस्तायेंगे,खूब ब्लौगिंग करेंगे.पर हाय! विधना को ये मन्ज़ूर ही ना था,उसने दूसरों को थकान उतारने हेतु हमारे यहां मेहमान बना कर भेज दिया.इस दौरान ब्लौग जगत से भी हेलो-हाय नसीब नहीं हुई,उंगलियां लगातार की-बोर्ड पर थिरकने के लिये मचलती रहीं, मन ही मन कितने ही चिट्ठों के खाके खींचे गये, इसका कोई हिसाब ही नहीं.
मेहमान भी कोई एक नहीं, सब अलग अलग उम्र के, अलग अलग शहरों से एक के बाद एक चले आये.गेस्ट-रूम खाली हुआ नहीं कि फ़िर आबाद होता चला गया.आज हमारे गेस्ट-रूम की दीवारें उदास हैं,डबल-बेड साफ़ सुथरा किन्तु सुस्त सा दिख रहा है.और तो और हमारी चन्चल वैली( हमारी ६ महीने की लैब्राडोर)भी एक कोना पकड कर चुप-चाप पडी है.कारण समझ ही गये होंगे, सब मेहमान रुखसत हो गये हैं.सबसे पहले मायके से बुआ-फ़ूफ़ाजी आ कर रहे, उनका आना उनकी उम्र के मुताबिक ही घर में शान्त वातावरण लेकर आया. सब कु्छ आराम -आराम से, कोई जल्दी नहीं,हडबडी नहीं. इस बहाने बुआ के हाथ के भरवां करेले भी खाने को मिले, गणगौर की पूजा भी उनके मार्ग-दर्शन में संपन्न हुई,वर्ना हर साल अकेले ही जैसे तैसे पूजा कर के गणगौर की फ़ोर्मैलिटी पूरी कर लेती थी.उनके जाने के एक घण्टे के अन्दर ही जयपुर से हमारी मित्र अपनी दो बेटियों,बेटी की सहेली,५ लव-बर्ड्स और एक पानी वाली कछुए के साथ चली आयीं. सबसे पहले उनके छो्टे से कछुए पोगो की रिहाइश का इन्तेज़ाम किया गया.उसे पानी से भरे शीशे के बरतन में रखा गया,घरेलु वातावरण देने के लिये हमारे अक्वेरियम से कुछ पत्थर उधार ले कर उसमें डाले गये, थोडा सा फ़िश-फ़ूड डाल कर पोगो भैया को एक ऊंचे पर रख दिया गया.अब लव-बर्ड्स की बारी आयी, तो उनके पिन्जरे में दलिया और बाजरा डाल कर पिन्जरे को फ़्रिज के ऊपर रख गया ताकि वैली की शैतानियों का साया निरीह चिडियों पर ना पडे.वैली भी अगन्तुकों की मेहमानी करने के लिये बेताबी से इधर उधर चक्कर काट रही थी.तब तक बाकी मेहमानों की चाय तैयार हो चुकी थी.घर में महिलायों की संख्या में आयी इस बढोतरी से घर के एक मात्र पुरुष यानि हमारे पति कुछ अलग थलग पड गये.लगने लगा मानो वो ही इस घर के मेहमान हैं.घर में टीन-एजर्स का राज्य छा गया,रात भर गप्पें,संगीत का शोर,मिड-नाइट स्नैक्स का दौर.उनके कमरे से परफ़्यूम और नेल-पौलिश की मिलीजुली गन्ध, रात में खाये गये स्नैक्स की खुशबू में मिल कर अजीब सा माहौल बना देती थी. सुबह असीम शान्ति,क्यूंकि,लड्कियां तो १०-११ बजे तक उठेंगी.फिर नाश्ता,नहना-धोना और शोपिन्ग के लिये कूच करने की तैयारी.ये बाहर जाने की तैयारी युद्ध स्तर की होती थी.कपडे,ज्वेलरी, चप्पल,मेक-अप,बैग-पर्स इत्यादि सब मैच मिला कर, सज धज कर सुन्दरियों की टोली जब कूच करती तो मुझे बाज़ार वालों पर तरस आ जाता,किस किस का दिमाग खायेंगी.हां,मनचलों की किस्मत से ज़रूर रश्क होता.घर में रौनक ही रौनक, उनके जाते ही घर भर में उदास शान्ति छा गई है.ना लव-बर्ड्स की चह-चहाट है, ना लडकियों की खिलखिलाहट है.ना बेवक्त चाय और गौसिप के दौर हैं.बस हम रह गये हैं.एक बात बतायें, हम भी जा रहे हैं कल मेहमान बन के.हमारी भी गरमी की छुट्टी है,HAPPY HOLIDAYS TO EVERY BODY !:)

6 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

यह मान कर चला जाये कि लोगों के बीच में भी मजा है और एकांत में भी।
मेरे पास जब एकांत आता है तो ढ़ेरों पुस्तकें आ जाती हैं मैत्री करने को।

Anonymous said...

आपको भी छुट्टियां मुबारक। हमारा सोंचिये..क्या गरमी.. क्या छुट्टिया :(।

मेनका said...

I also enjoy my leisure...try to work on my hobbies and lots of books are my best friend always. Anyways happy holidays to u too.

Anonymous said...

:):):)bahut bahut badhiya anybhav raha ji,khas kar kudiyon ki toli shopping par jana:):),happy holidays,ab jab ki mehman nahi hai,ek do din aap bhi kahi ghum aaye,vaise mehmno se bhara ghar bada rounakwala hota hai.gangaur ki shubkamnaye,kuch puja ka aashirwad hamare liye bhi bhej dijiye ga.
valley also must be missing the guests like u r,our two dogs also feel same when guest go back to their cities.

सागर नाहर said...

हमें चिढाईये नहीं वे सारी बातें य़ाद दिलवा कर.. जब खूब धमाल होती थी। चोर पुलिस, गिल्ली डंडा, सीतोलिया, नदी पहाड़, लंगड़ी टांग और ना जाने कौन कौन से खेल केले जाते थे।
:)
छुट्टियाँ मुबारक हो आपको

दिनेशराय द्विवेदी said...

हमें तो ऐसी छुट्टियाँ मनाए बरस हो गए।