Saturday, March 29, 2008

इज़्ज़तदार लोग

बिटिया के बोर्ड एक्जाम्स के बाद कल एक मित्र के यहां रात्रि भोज पर आमन्त्रित थे हम लोग.यकीन मानिये जितने चाव से हम उनके यहां गये थे उतने ही बदमज़ा हो कर वहां से लौटे.हुआ यूं कि वहां पर हमें एक ७-८ साल की प्यारी सी बच्ची मिली जिसका परिचय हमारी मित्र सुनीता ने मिर्ची कह कर करवाया.ये भला क्या नाम हुआ? हमारे पूछने पर उन्होंने बताया कि यह हमारी फ़ुल टाइम मेड है.बहुत चंचल है,फ़ुर्तीली है,किन्तु पट से जवाब भी दे देती है, इसीलिये हमारे पतिदेव ने इसका नाम- करण मिर्ची कर दिया है.मै ये देख के हैरान थी कि इतनी छोटी सी बच्ची २४ घन्टे में कितना काम कर पाती होगी.लेकिन वाकई मिर्ची दौड-दौड कर सारे काम फ़ुर्ती से निबटा रही थी, बीच बीच में बच्चों के कमरे में जाकर एक झलक टीवी की भी देख आती थी.मेरे आगे तरह तरह के स्नैक्स रखे थे, जो ड्रिन्क्स के साथ पेश किये गये थे, किन्तु मेरे मन में कुछ और ही घुमड रहा था. इससे उम्र में बडे हमारे बच्चे रिलैक्स करते हुए, पसर कर टीवी देख रहे हैं, हाथ में कोल्ड ड्रिन्क, सामने चिप्स की प्लेट.ये छोटी सी मिर्ची, (जिसका असली नाम तक हमारे सामने नहीं आया है), सबकी सेवा में व्यस्त है.क्या इसका मन बच्चों के साथ खेलने को नहीं करता होगा?क्या इस का मन नहीं करता होगा, कोई इसके हाथ में भी कोल्ड ड्रिन्क पकडा कर कहे,"तू भी बच्चों के साथ टीवी देख ना?"
बहरहाल, समय धीरे धीरे कट रहा था, मेरा मन मिर्ची में ही अटक रहा था.रात के ११ बज गये,अचानक हमारे मेजबान को सिगरेट की तलब हो उठी.घर में ढूंढा,सिगरेट नहीं मिली.मेजबान महोदय ने एक सीटी मारी,मिर्ची हाज़िर हो गई.बिना कुछ बोले उन्होंने एक आंख दबाते हुए ५० रु. का नोट उसे पकडा दिया.मिर्ची ये जा और वो जा.मेरी प्रश्नसूचक निगाह भांपते हुए बोले,"पान की दुकान तक भेजा है.जब वो मेरे लिये सिगरेट लाती है तो मै उसे १ रुपया देता हूं.खुशी खुशी चली जाती है."मैने तुरन्त कहा,"उसे अकेले इतनी रात को पान की दुकान पर अकेले क्यूं भेज दिया, हमारी बेटियों को साथ भेज देते?" तपाक से प्र्श्न के जवाब में प्रश्न आया,"अरे !! इतनी रात को हमारी लडकियां पान की दुकान पर कैसे जायेंगी? वहां तो इस वक्त गुन्डे और शराबी किस्म के लोग होते हैं.मै सन्न रह गई.मासूम मिर्ची एक रुपये के लालच में अनजाने में खतरे में पड रही थी, और हमारी लडकियां? इज़्ज़तदार घर की लडकियों को खतरे में कैसे और क्योंकर डाला जाये? मै कोस रही थी उस पल को जब हमसे उनकी मित्रता स्थापित हुई थी.

11 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

मानवत जब ग्रेड विभेद के हिसाब से चलती है तो खराब लगता है। बहुत ही खराब।
आपने अच्छा चित्रण किया मानव के दुमुंहेपन का।

Shiv said...

"मै कोस रही थी उस पल को जब हमसे उनकी मित्रता स्थापित हुई थी."

उस पल को कोसने से क्या होगा? आपको इज्जतदार लोगों को कोसना चाहिए. आख़िर पल भला या बुरा हो सकता है लेकिन इसे भला या बुरा बनाने वाला इंसान ही तो है. भला या बुरा इंसान.....:-)

सागर नाहर said...

घर घर में यही हाल है इलाजी किस किस को कोसियेगा।
कुछ सालों पहले मैं सुरत में था तब महानगरपालिका के कमिश्नर एक छोटी बच्ची को अपने घर में नौकरानी की तरह रखते और उसे मारते पीटते पाये गये थे।

Deepakwrites said...

Couple of days back on account of racist comments from harbhajan the whole country was shouting yelling and fighting for so called "Respect". Its quiet astonishing to note that the in the same country all this happens. Sad, very sad state of affairs.

Very good article di.

We read about child labour, we talk about it, but we do not do anything about it.

दिनेशराय द्विवेदी said...

इला! बहुत अच्छी दृष्टि पायी है। लिखती रहो इसी तरह से।

Anonymous said...

ilaji,bahut sahi chitran kiya hai un so called izzatdar logo ka,how can anyone send a lill child at 11pm on paan ki dukan,disgusting,apni beti rani aur parayi beti naukrani kaise huyi,this child labour should stop,but one main reason for these kinda things may be huge population which is increasing day by day.u wont believe in hosp were i work we hv 40 to 50 deliveries per day and atleast 10 ceaserean section,damn i hate my emergency days of work,even no khana for two days sometimes,we r in operation theater whole time,

suman said...
This comment has been removed by the author.
मेनका said...

यह बात बिल्कुल सच है| हम चाहे ख़ुद को कुछ भी कहें की हम बहुत ही इज्जतदार समाज मे रहते है लेकिन हमारी सोच अब तक इनती इज्जतदार नही बन पायी है|

ghughutibasuti said...

आपकी बात से पूर्णतया सहमत हूँ । जब हम अन्याय कर रह होते हैं तो हम क्या कर रहे हैं सोच ही नहीं पाते । शायद ये लोग भी नहीं समझ रहे कि जो ये कर रहे हैं वह गलत है ।

घुघूती बासूती

richa said...

यही जीवन है जब हम ये मेरा बच्चा है और ये दूसरे का सोच बना कर जीते है ,मैने तो ये बात अपने पारिवारिक रिश्तेदारो तक मे देखी है जी है..पर यही जीवन है ..:)

note pad said...

इला जी आपने बहुत ही गम्भीर बात कह दी है । बहुत से प्रश्न इस पोस्ट से उपजते हैं । इज़्ज़त का आर्थिक सामाजिक स्तर से क्यों लेना देना होता है ? रात ग्यारह बजे पान की दुकान का खराब माहौल कानून को क्यों नही दिखता ? क्या खराब महौल को ऐसे ही देखते रहने और उससे खुद को अपनी बेटियों को बचाते रहेंगे ?और जो नही बचा सकते वे इनके हत्थे चढते रहेंगे ।
सुजाता