Sunday, June 1, 2008
आज इतवार की दोपहर को बहुत दिनों बाद पतिदेव और पुपुल के साथ बाहर खाने का प्रोग्राम बना.मौ्का था,पुपुल के टेन्थ बोर्ड अच्छे अंकों से पास करने का.सुबह मौसम ने अच्छी शुरुआत की थी किन्तु घर से निकलते ही कडी धूप और चिपचिपी गर्मी ने हमारे उत्साह को थोडा कम कर दिया.खैर हम लोग कना्ट प्लेस स्थित शरवन भवन पहुंचे.दिल्ली के बाशिन्दे इस जगह को खूब पहचानते होंगे.यह रेस्टोरेन्ट दक्षिण भारतीय खाने के लिये प्रसिद्ध है.बाहर भारी भीड थी.१५ मिनट की वेटिंग के दौरान मैं अपने प्रिय काम में लग गई.अरे, कोई खास काम नहीं, यही आते जाते लोगों को देखना.मेरी नज़र एक परिवार पर पडी,जिसमें एक वृद्धा, एक वृद्ध,एक अधेड उम्र की महिला और दो १०-१२ वर्ष के दो बच्चे.अमूमन छुट्टी वाले दिन ऐसे दृश्य काफ़ी दिख जाते हैं.फ़िर इस परिवार में ऐसा क्या था जो मुझे आकर्षित कर रहा था.खास बात थी उस वृद्ध दंपत्ति की उम्र में.दोनों ही पति-पत्नी ८० पार थे और जिस प्रकार से उन वयोवृद्ध महिला ने अपना हाथ उन वृद्ध के हाथ में दे रखा था,वो देखने लायक था.ऐसा लग रहा था जैसे उन्होंने अपना समूचा विश्वास अपने पति के हाथ में दे रखा था.पति ने अपनी पत्नी का हाथ ऐसे थाम रख था जैसे वो कोई छोटी सी बच्ची हो.पत्नी को पूरी तरह सम्भाल के आगे बढ रहे थे वो, धीरे धीरे कदम बढाते. प्रेम,समर्पण और विश्वास से भरा यह दृश्य मेरी आंखों में आंसू ले आया.ईश्वर से उसी समय उनके इस साथ को बनाये रखने की प्रार्थना की.तारीफ़ उनके परिवार के नन्हे सद्स्यों की भी है कि वो बहुत ही प्यार और अपनेपन से अपने बुजुर्गों के साथ वक्त बिता रहे थे.वर्ना आज के समय में, वो भी दिल्ली जैसे शहर में बुजुर्गों को खाने पर बाहर ले जाने की भला कौन सोचता है? मन से उन बच्चों और उनकी मां के लिये भी ढेर सारा भाव जागा.ईश्वर से यही प्रार्थना है कि हमारे देश में ज़्यादा से ज़्यादा लोग अपने बडों के साथ प्यार और सम्मान के साथ पेश आयें,ताकि उनके आशीर्वाद से वो आगे बढते हुए भी अपने संस्कारों को याद रखें.
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18 comments:
इला जी धन्यवाद आपकी टिपण्णी के लिए... मैं 'दाल, चावल, रोटी' पर जल्दी ही शामिल होता हूँ... बस समयाभाव के कारण पोस्ट नहीं लिख पा रहा... आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया ... अच्छा लगा.
pehle tho pupil rani ko bahut badhai acche ankon se pass hone ke liye,aur phir un vrudh dampati ki khubsurat mohobbatein dastan bhi bahut achhi lagi,sahi kehte hai,pyar ussi umar mein jake apne sacche maine pata hai
ईला जी
हमारे यहाँ एक वृद्ध दंपति है जो जब भी हमारे जीजाजी की किराणा की दुकान पर आते हैं, तब उनका प्यार और नोक झोंक देखते ही बनती है, व वृद्धा अपने पति से कहती है बुड्ढे ठंडा पिलाता है कि नहीं..:)
हमें उनकी हंसी मजाक देखकर हंसी आ जाती है और कई बार तो इर्ष्या होने लगती है।
बहुत ब्ढ़िया लेख..
very sweet.....
आज यह पोस्ट पढ़ कर काफी यादें ताज़ा हो गयी | जब भी मैं और मेरे पति साथ में रास्ता पार करते हैं वो एकदम से मेरा हाथ पकड़ लेते है जैसे की मैं कोई छोटा बच्चा हूँ और सड़क पार करना नहीं आता | शुरू में अज्जेब लगता था फिर गुस्सा भी आया | फिर ठन्डे दिमाग से सोचा तो एहसास किया की उनका प्यार है... की वो किसी सड़क हादसे में मुझे खोना नहीं चाहते | तो बस फिर क्या। .. तब से मैं चुप चाप अपना हाथ आगे बढ़ा देती हूँ। ... की जो करेंगे साथ करेंगे
Indeed spending time with elders have become a thing of the past, I think somewhere our value system is getting weak and if We Today's parents dont lead by example perhaps doom is near.
A simple observation by you leads to many of us to think
It's not that all intentionally avoid spending time with elders. Time don't permit to do and I don't consider it as youngsters fault. It was the wish of the parents to see their children achieve sky success and when they achieve it and devote them then this problem of not giving time comes. Still many children are there who take out time to spend time with elders.all I can say is time will teach each one of us what's the right path
Beautiful post, dear. Our family in India is a joint family, and we visit India twice a year. After reading your post, I can recall how we spend our time with them going out this time.
Bohot hi Khub likha hai aapne. It’s sad that people dont get to spend time with elders very often these days due to whatever reasons..
We should spend more time with our elders. They need us the most and expect only love and time in return. Amazing post. Amazing message.
I may not be able to understand the blog post due to language barrier but based on the reviews, it seems to be about spending time with elders. Coming back from a month vacation from the Philippines which I/we spent with our families, it's truly an amazing time to create memories again. We may not take as much time as we want to from our busy lives but when you get to have those times, making sure you spend it wisely with quality and focusing in the present matters and could help.
I agree we should spend more quality time with our family and elders. This is such a beautiful post loved reading it
Such a refreshing article. Family bonding is most important and spending quality time with them too. Many lessons to learn from this article for fast generation like ours.
Really liked the way you shared this with us. I'm from Delhi and very much aware of the place you are talking about. Just like you I'm also do the same like while sitting I observe other people. I always admire this care and affection which you told about that old couple.
Kabhi kabhi aisi baatein humme Choo Jatin hai ki wah Jeevan bhar hamare saath rehti hai. Aapka blog post bahut Acha hai.
Congratulations for the results and garbar hamesha youngers ki galati nehi hoti hai, kabhi kabhi itni jyada responsibility rehta hai k dil mai hone se bhi time negi hota hai and kuch cases mai parents bhi bacho k sath move hona nehi chahte hai to us time family and job balance karna bhi muskil ho jati hai.
I can feel this emotion !! My in-laws are 75+ but they show immense love and care towards each other. I feel Umar ke saath pyaar aur badhta h.
I have learned a lot from my grandma and used to be always around her when she was there. I am observing the same with my daughter too. She loves spending her time with her grandparents, mostly.
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