Monday, July 28, 2008

अब के सावन-------

बंगलोर और अहमदाबाद के दिल दहलाने वाले विस्फ़ोटों में अपनी जान और सब कुछ लुटा देने वालों के नाम यह श्रद्धांजलि दे रही हूं :




अब के सावन मेरे यहां बरखा नहीं बरसती,
अब के सावन फ़िज़ाओं में दहशतों की बारिश है

बादलों का शोर, बमों के शोर तले दब गया है
फ़ीकी पड गई है बिजुरी की कौंध,आगजनी की रोशनी में

अब के सावन मेरे यहां मल्हार के सुर नहीं बिखर रहे
बिखरा हुआ है तमाम शहर में, रोदन का शोर

खो गईं हैं बच्चों की किलकारियां,सावन की टीप
पसर गया है सन्नाटा,मासूमों की चीख

अब के सावन कोई बाहर भीगने नहीं जा रहा
भीगे हैं सबके नैन दहशत की बाढ में

17 comments:

Anonymous said...

मार्मिक!

Rajesh Roshan said...

अब के सावन कोई बाहर भीगने नहीं जा रहा
भीगे हैं सबके नैन दहशत की बाढ में

गहरी वेदना

rakhshanda said...

अब के सावन मेरे यहां बरखा नहीं बरसती,
अब के सावन फ़िज़ाओं में दहशतों की बारिश है

बादलों का शोर, बमों के शोर तले दब गया है
फ़ीकी पड गई है बिजुरी की कौंध,आगजनी की रोशनी में

bilkul sahi,bahut dardnaak hai ye saavan...khuda kare agle baras ek suhana or shaant saavan hamara apna ho...

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत ही मार्मिक व सार्थक रचना है।

अब के सावन कोई बाहर भीगने नहीं जा रहा
भीगे हैं सबके नैन दहशत की बाढ में

राज भाटिय़ा said...

खो गईं हैं बच्चों की किलकारियां,सावन की टीप
पसर गया है सन्नाटा,मासूमों की चीख
मेरी तरफ़ से भी श्रद्धांजलि इन अपनो को
धन्यवाद

बालकिशन said...

बेहद मार्मिक और कारुणिक रचना.
आज के समय की सच्चाई को बयां करती.
कविता नहीं हमारे समय का दर्पण है ये.

डॉ .अनुराग said...

खो गईं हैं बच्चों की किलकारियां,सावन की टीप
पसर गया है सन्नाटा,मासूमों की चीख

अब के सावन कोई बाहर भीगने नहीं जा रहा
भीगे हैं सबके नैन दहशत की बाढ में

sach me pichle do din se kuch likhne ka man nahi ho raha hai.

Udan Tashtari said...

अब के सावन कोई बाहर भीगने नहीं जा रहा
भीगे हैं सबके नैन दहशत की बाढ में

-मार्मिक व सार्थक रचना.

Rachna Singh said...

illa a very nice expression on the happenings excellent in temrs of poetry

मेनका said...

Ilaji mere kuchh apne relatives bhi Delhi me rahte hai..sach to ye hai ki Bharat me koi bhi jagah ab surakhit nahi lagati..aise to sab bhagwan ke haanthon me hai lekin phir bhi kyon biswas ab dagmagata ja raha hai..ye abhas hota hai ki sach me hum kalyug me ji rahe hai.
sabke surksha ki kamna karte huye.

admin said...

अब के सावन कोई बाहर भीगने नहीं जा रहा
भीगे हैं सबके नैन दहशत की बाढ में

Sahi kaha aapne. hamari bhi sraddhanjali.

vipinkizindagi said...

achchi aur dil ko chu lene vali rachna....

मोहन वशिष्‍ठ said...

बहुत ही सच्‍ची श्रृद्धांजलि दी है आपने सच बहुत ही अच्‍छी दिल को छू लेने वाली

योगेन्द्र मौदगिल said...

मार्मिक भावाभिव्यक्ति...

kabira said...

marmik chitran ,dahsahtgadon hoshiyar ek shaskat aavaz

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

kitna kadwa sach likha aapne...

अब के सावन मेरे यहां बरखा नहीं बरसती,
अब के सावन फ़िज़ाओं में दहशतों की बारिश है

Deepakwrites said...

Di,
Wonderful transition from text to poetry... the toughes thing about litreture is to select correct words for the situation coz there are so many similar sounding and similar meaning words.. found your post to be voice of your mind.. great job.. needless to say will take this to mom again.. :)
keep writing..
Regards
Tunnu