Wednesday, August 13, 2008

आज़ादी के सही मायने

आज़ादी मिले हुए हमें ६० साल हो गये.कल स्वन्तत्रता दिवस की ६१वीं वर्षगांठ है.हम खुशनसीब हैं कि हम आज़ाद भारत में सांस ले रहे हैं,किन्तु यहां यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या वास्तव में हम आज़ाद हैं ?चौंकिये मत,हमारे देश में हमें हर प्रकार की आज़ादी मिली हुई है,किसी को भी गाली देने की आज़ादी,किसी की भी पिटाई करने की आज़ादी,शराब पीकर गाडी चलाते हुए लोगों को कुचल देने की आज़ादी,क्रूरतापूर्ण हत्या करने की आज़ादी,मासूम बच्चियों/अबलाओं का बलात्कार करने की आज़ादी,गरीबों के शोषण की आज़ादी,कानून की धज्जियां उडाने की आज़ादी.कहां तक गिनाऊं,हम कितने आज़ाद हैं?
देखा जाये तो ६० वर्ष का मनुष्य हर तरह से परिपक्व हो जाता है,जवानी में की हुई गलतियों से सीख लेते हुए क्रमश: सुधार की ओर बढता है,किन्तु यदि हम अपने देश के विगत ६० वर्षों को देखें तो पता चलता है कि अभी तो अल्हडता इसकी रगों में बह रही है.हर क्षेत्र मे प्रगति करते हुए भी अभी हम खुशहाली से बहुत दूर हैं.देश के चरित्र का तो कहना ही क्या.देश चलाने वाले लोगों में ईमानदार लोग उंगलियों पर गिने जा सकते हैं.भ्रष्ट और आपराधिक बैकग्राउण्ड वाले लोग हमारे देश को चला रहे हैं.इससे ज़्यादा दुर्भाग्य हमारे देश के गरीबों का क्या होगा कि सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिये उन्हें हर कदम पर रिश्वत देनी पडती है. हमारे देश का किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो गया है.स्कूल /कालेज में प्रवेश के लिये रिश्वत देते हुए छात्र के मन में यह बात घर कर जाती है कि कमाते वक्त मैं भी रिश्वत लूंगा.जो ईमानदार हैं,उन्हें ये सिस्टम लील जाता है.मै यहां कोई नयी बात नहीं कर रही हूं,सबको पता है. हमारे यहां "चलता है",ये दो शब्द हर भारत वासी के मन में अन्दर तक बैठ गये हैं,या बैठा दिये गये हैं.हम क्यूं हर गलत बात को स्वीकार कर लेते है,गलत को गलत कहने में और सही को सही कहने में हमारी ज़बान क्यूं लडखडाती है? हम किससे डरते हैं? हम अपने बच्चों को निडर बनना कब सिखायेंगे?
अभी तो हमें कई आयामों पर आज़ादी हासिल करनी है.अशिक्षा से आज़ादी,गरीबी और बेरोज़गारी से आज़ादी,सडी गली परंपराओं और कुरीतियों से आज़ादी,भ्रष्टाचार और बेइमानी से आज़ादी,सच बोलने की आज़ादी.हमारे दिलो दिमाग को हिंसा से आज़ादी कब मिलेगी? ब्रेनड्रेन से आज़ादी कब मिलेगी? कब विदेशों से पढ कर आने वाले छात्र अपने देश में नौकरी करने में गर्व महसूस करेंगे? हम सब डर से कब आज़ाद होंगे? "सब चलता है",इन तीन शब्दों से हमें आज़ादी कब मिलेगी ?
हम सभी यदि अपने स्तर पर आज़ादी की मुहिम चलायें तो मुझे यकीन है कि जब हम सब अपने बच्चों को आज़ादी का महत्व और सही मतलब समझाने में कामयाब हो जायेंगे,तो एक स्वतन्त्रता दिवस ऐसा भी आयेगा कि हमको तो तिरंगे पर नाज़ होगा ही,तिरंगा भी हम पर नाज़ करके इठलाता हुआ फ़हराएगा.जय हिन्द.

23 comments:

राज भाटिय़ा said...

आप के लेख का एक एक शव्द मेने ध्यान से पढा, ओर मुझे बहुत अच्छा लगा,जिन बुराईयो की तरफ़ आप ने ध्यान दिलाया हे सच मे हम उन्हे ही आजादी समझते हे, लेकिन सच बिलकुल इस से उलटा हे,
बहुत बहुत धन्यवद मेरे मन की बात आप ने अपनी कलम से लिख दी, मेरे क्या यह कईयो के मन की बात हे

ilesh said...

sahi kaha raaj ji....behtarin post ila ji....

L.Goswami said...

sahi kaha aapne..baharhal aapko swatantrata diwas ki hardik baadhayi.jay hind..

Gyan Dutt Pandey said...

मुझे बहुत बड़ा भय यह लगता है कि कभी मुझे रिश्वत देनी पड़ी तो...
आगामी कुछ वर्षों में मैं अवकाश प्राप्त करूंगा। और भारत में सिस्टम्स काम नहीं करते। तब यह फेस करना होगा। छोटी से छोटी सुविधा के लिये जद्दोजहद और उत्कोच की कल्पना मुझे स्वतन्त्र भारत का सबसे दुखद पहलू लगता है।

rakhshanda said...

आज़ादी बहुत बहुत मुबारक हो, बहुत अच्छी पोस्ट

बालकिशन said...

बहुत ही विचारोत्तेजक और सटीक विश्लेषण.
बधाई.

बालकिशन said...

बहुत ही विचारोत्तेजक और सटीक विश्लेषण.
बधाई.

Unknown said...

u write damn gud ILA.keep it up. JAI HIND.

Anonymous said...

u write damn gud ILA. keep it up

JAI HIND

मेनका said...

Independence in thought
Independence in speech
..aaj ki jarurat hai..aaj ye sab hote huye bhi shayad hamaare paas nahi hai..tabhi hum sab lalach, bhukh, garibi, ashikchha ki chapte me khote ja rahe hai.

रश्मि प्रभा... said...

bahut sashakt shabdon ke saath sachchaai ko rakha hai,
badhaai is thos rachna ke liye

admin said...

सही बात कही आपने। हमें इन सबसे भी आजाद होना चाहिए, तभी हम सच्चे अर्थों में आजाद हो सकेंगे।

Asha Joglekar said...

Azadi ke is parw par aapne desh kee hakikat bayan kee hai aur hum sab ko ek chunauti bhi dee hai ki hum pehal karen such bolne ki ghoos na dene ki aur sahi kya hai ye janne aur karne ki. Thanks. aur Badhaee !
Aapke blog par pehli bar aai . laga ki ab tak kyun nahi aaee.

Anonymous said...

हमारे यहां "चलता है",ये दो शब्द हर भारत वासी के मन में अन्दर तक बैठ गये हैं,या बैठा दिये गये हैं.हम क्यूं हर गलत बात को स्वीकार कर लेते है,गलत को गलत कहने में और सही को सही कहने में हमारी ज़बान क्यूं लडखडाती है? हम किससे डरते हैं? हम अपने बच्चों को निडर बनना कब सिखायेंगे?

Bahut sahi baat hai, Aakhir kab tak...

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

एक बात बताऊँ......उठने का कोई टाइम नहीं होता.....अगरचे आदमी सोता ही रहना चाहे......!!

Science Bloggers Association said...

आपकी लेखनी हमें सोचने पर मजबूर करती है।

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खुशियों का विज्ञान-3
एक साइंटिस्‍ट का दुखद अंत

Divya Narmada said...

स्पष्ट सोच, सटीक चिन्तन

Dev said...

आप सबको पिता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ...
DevPalmistry

वीना श्रीवास्तव said...

एकदम सही कहा है आपने...देखिए वो दिन कब आता है...जब हम इन बंधनों से मुक्त होंगे...

Smart Indian said...

2008 में लिखा लेख आज भी उतना ही प्रासंगिक है।

Unknown said...

I am a teacher in a senior school.I came across ur lekh on Independence day..Its really inspiring.... Kuddos to you

Anonymous said...

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Daisy said...

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