एक महीने से ऊपर हो गया,अपने ब्लोग पर कुछ नहीं लिख पाई.कारण ममा की अस्वस्थता,जिसके चलते दिलोदिमाग दोनों ही साथ नहीं दे रहे.ममा पिछले ४ महीनों से बीमार हैं.मैने होश सम्भालने से लेकर अब तक उनको कभी बिस्तर पर लेटे नहीं देखा दिन के वक्त.चाहे कितनी भी शारीरिक पीडा हो, वो लेट कर आराम नहीं करती थी,अब आलम ये है कि बाथरूम तक जाने में भी उनको दिक्कत होती है.बीमारी भी ऐसी कि कोटा,जयपुर और दिल्ली के बडे चिकित्सक भी उनके न टूटने वाले बुखार का कोई कारण नहीं ढूढ पाये.हर प्रकार के टेस्ट हो गये,शरीर के सभी अंगो का सी.टी स्कैन हो गया, बोन स्कैन हो गया,सब कुछ नोर्मल.खैर इस सब के चलते चिकित्सा जगत के कई पहलुओं से अवगत हो गई.एक सुखद बात यह रही कि चिकित्सकों के बारे में जो लोगों की आम राय होती है वो निर्मूल सिद्ध हो गई.यह पता चला कि वो कितने समर्पित होते हैं अपने कार्य और मरीज़ों के प्रति.किस टेस्ट के कितने पैसे लगते हैं,कौन सा टेस्ट क्यों कराना है,किस टेस्ट की नोर्मल रेन्ज कितनी है सब पता चला.अब ममा का ट्रायल बेसिस पर इलाज शुरु हो गया है,६-७ चिकित्सकों की आम राय पर निर्धारित.खैर ईश्वर जानता है कि ममा को आराम कब आयेगा,अभी तो वो घोर कष्ट में हैं.पापा अकेले ही दौड-धूप कर रहे हैं और वो भी पूरे प्यार और संयम से.मेरे पास थे तो भी ममा को अकेले नहीं छोडते थे ,अब भी उन्हीं की नींद सोते हैं और उन्हीं की नींद जागते हैं.इस सब में ना वो भाई की मदद ले रहे हैं और ना ही मेरी.कब कौन सी दवा देनी है,कब सूप देना है, कब फ़ल काट के देना है, सब काम उन्होंने अपने ही हाथ में लिया हुआ है.ना झल्लाते हैं, ना थकान की शिकायत करते हैं,ऊपर से गज़ब ये कि सेन्स ओफ़ ह्यूमर बरकरार है.मैं यहां दिल्ली में बैठी हुई सिर्फ़ चिन्ता कर सकती हूं सो करती रहती हूं.अन्तरजाल पर पढ कर ममा की बीमारी के बारे में खोज बीन करती रहती हूं.
ममा की बीमारी के साथ ही मेरी चिन्ता का एक और कारण है.वो है मेरी काम वाली भागीरथी के बेटे की बीमारी.९ साल का रवि बीमारी के चलते ६ साल का दिखने लगा है.उसे भी बगैर किसी कारण के पिछले ४ महीने से बुखार आता है,सारी रिपोर्ट्स नोर्मल.किन्तु वो बच्चा पिछले १५ दिनों से कलावती सरन अस्पताल में भरती है.यह अस्पताल बच्चों का सरकारी अस्पताल है.जब मैं बीमार रवि को देखने अस्पताल गई तो पहली बार मेरा साबका सरकारी अस्पताल से हुआ.मैं अपने आप को काफ़ी कडक दिल मानती हूं किन्तु यहां आकर मेरी रूह कांप गई.अस्पताल के अंदर कदम रखते ही मेरी नाक का स्वागत बदबू के भभके ने किया.इस गन्ध में दवा,पेशाब,पसी्ने,गन्दगी,फिनायल सभी मिले हुए थे. फ़र्श पर गन्दगी के चकत्ते,जगह जगह कचरा.सबसे पहला खयाल आया ,इतनी बदबू में कौन मरीज यहां से ठीक हो कर जाता होगा.खैर थोडा आगे बढने पर एक कोने में भीड दिखी,ये भीड मरीजों की नहीं,सरकारी मुलाजिमों की थी जो वहां कोई आंदोलन छेडे बैठे थे,एक छुटभैया नेता कुर्सी पर खडा होकर जोर जोर से नारे लगा रहा था,इस बात से बेखबर कि नन्हे मरीज़ों को कितना कष्ट हो रहा होगा यह शोर सुन कर.दो मंज़िल सीढी चढ कर एक लम्बे गलियारे में कदम रखती हूं,दोनों तरफ़ मातायें अपने बीमार बच्चों को लेकर बैठी हुई है.हर तरफ़ बीमार बच्चे हैं,ज़्यादातर के हाथों में कैन्यूला लगी है.हे भगवान इतने नन्हे बच्चों को इतनी पीडा और बीमारी कयूं दी आपने? लगता है कि दुनिया का हर बीमार बच्चा यहीं पर आ गया है.सब तरफ़ बेबसी और दर्द फ़ैला है.एक चीज़ है जिसने सभी को एक साथ जोडे रखा है, वो है उम्मीद.हर एक का दर्द सबका दर्द है और हर एक की छोटी से खुशी भी यहां सब की खुशी बन जाती है.हम सब को यहां से कुछ सीखना चाहिये.आम ज़िन्दगी में हम सब ने अपने अपने दायरे बना रखे हैं.यहां किसी का अपना कोई दायरा नहीं. जिस क्यूबिकल में भागीरथी का बच्चा भरती है,वहा तक पहुंच तो जाती हूं किन्तु बाहर ही ठिठक जाती हूं.एक छोटे से कमरे में कुल चार बिस्तर लगे हैं,एक एक बिस्तर पर चार चार बच्चे लेटे हुए हैं,साथ में उनके अभिवावक भी हैं.जब तक रवि का बिस्तर ढूंढूं,लाइट चली गई है.वातावरण एकदम घुटा हुआ हो रहा है,हवा स्तब्ध है.गर्मी के कारण ज्यादातर बच्चे रोने लगे हैं.बदबू भी पूरा जोर लगा रही है किन्तु अब तक नासिका को आदत हो गई है इसे झेलने की.अब समझ आता है कि सभी चिकित्सक,नर्स और वार्ड-बाय इतने आराम से इस बदबू भरे वातावरण में आराम से कैसे घूम रहे हैं.ज़ाहिर तौर पर उनकी नासिका पर बदबू का कोई जोर नहीं चलता,उन्हें आदत हो गई है इस घुटन की, इस बदबू की.१० मिनट में लाइट आ गई है.मैं अपने आप को कमरे में ठेल देती हूं.रवि दूसरे नम्बर के बिस्तर पर दिख जाता है,वो आंखें बन्द कर के चुपचाप लेटा हुआ है.मुझे देखते ही अकसर खिल जाने वाला रवि आज निस्तेज है.बक बक कर के मेरा दिमाग खा जाने वाला रवि आज चुप है.एक समय था जब हंसी और शरारत उसकी शक्ल से चस्पा रहती थी,आज ना शरारत है,ना मुस्कुराहट है.एक ही जिद,घर ले चलो.उसके लिये फ़ल लाई थी,उसे अनार पसंद है,वो नही खाना चाहता.भागीरथी ने थैले से फ़ल निकाल कर साथ में लेटे हुए बच्चों को बांटने शुरु कर दिये.शुक्र है ज़्यादा फ़ल और बिस्किट ले गई थी ,कमरे के सभी बच्चों में कम नहीं पडे.रवि को और अन्य बच्चों को बात चीत कर के हंसाने का असफ़ल प्रयास करती हूं.इतने में कई अपढ माता पिता अपना अपना पर्चा ले कर सामने खडे हो गये हैं,कोई कुछ पूछ रहा है,कोई कुछ.सब के पर्चे पढ पाने में,समझ पाने में खुद को असमर्थ पाती हूं.भागीरथी सबको बताती है, ये दीदी डाक्टर नहीं है.बमुश्किल एक घण्टा गुजरा है कि जाने का समय हो गया है,पुपुल को स्कूल से लेना है और उसका स्कूल नोएडा में स्थित है.रवि से फिर आने का वादा करके लौट रहीं हूं.सलाम करती हूं उन चिकित्सकों और नर्सों को जो इन नन्हे मरीज़ों को अच्छा कर के घर भेजते हैं.दिल भारी भारी है,कई सवाल मन को मथ रहे हैं,इन सरकारी अस्पतालों में सफ़ाई क्यूं नही रह पाती जबकि इतने सारे सफ़ाई कर्मचारी नियुक्त हैं,अस्पताल और बडे क्यूं नही हो सकते जिस से एक एक बिस्तर पर ३-४ मरीज़ ना रहें,एक दूसरे का संक्रमण ना फ़ैले.ईश्वर ने मासूम बच्चों को ही क्यूं चुना दर्द देने के लिये? प्रश्न कई हैं किन्तु उत्तर नहीं खोज पा रही हूं.किसी दिन शायद किसी सवाल का जवाब मिले ------.इन्शा अल्लाह !!
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20 comments:
इस दशा से कई बार गुजरा हूं, लिहाजा समझ सकता हूं।
BHAGWAAN KA SHUKR KARNA CHAHIYE ROZ RAAT KO JAB DIN SHANTI SE GUAR JAYE,,,,BAHUT GAM HAIN ISS DUNIYTA MEIN.,,,,,,,,,,,,ITS JUST DAT WE ALL LIVE IN A WEB OF LIFE DAT HAS BEEN CREATED BY OURSELVES.ITS A MYTH.WE MUST UNDERSTAND DAT.KEHNA AASAAN HAI,,,KARNA MUSHKIL,,,,,,,,,,JAANTA HUUN,LEKIN AGAR HUM KISI KA BHEE GUM BAANT SAKEIN,,,,TO SACH MEIN DIL MEIN THANDAK PADTEE HAI,,,,,,,,,,I WISH WE ALL LIVE IN A DISEASE FREE WORLD ONE DAY,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,AMEEEEEN.
मेने आप का लेख बहुत ध्यान से पढा लगता हे मेरा सारा दर्द आप ने अपनी कलम से यहां लिख दिया हे,भगवान या जिसे भी आप मानती हे उस से मेरी प्राथना हे आप की माता जी को जल्द ठीक कर दे,बाकी बाते छोडो, हा सफ़ाई तो जरुर होनी चाहिये, लेकिन करे कोन सफ़ाई,सफ़ाई कर्मचारीओ को सरकार ने सर पे चढा रखा , हम लोग इसे गन्दा समझते हे,आम आदमी को समझ ही नही की गन्दगी हम किसी ओर के लिये नही अपने लिये ही डाल रहे हे,अगर हर नागरिक अपनी सफ़ाई आप करे तो यहां क्या पुरा भारत साफ़ सुथरा हो,ओर हमे गन्दगी डालते हुये शर्म आये,
अस्पताल बडे हो सकते हे, लेकिन लोगो को, नेतआओ को , ओर भरष्टाचार अफ़्सरो को अपनी जेब भरने से फ़ुरसत कहा,मुझ से कोई पुछे नरक कहा हे,एक एक बेड पर चार चार बच्चे, हे भगवान....
धन्यवाद
उम्मीद है कि बुआ जी की तबियत जल्द सही हो जाये। बाकि हालात पर तो यही कह सकते हैं कि "दुनिया में कितना गम है..मेरा गम कितना कम है"
dil ko chhu lene vala lekh hai. bhut badhiya.
ढेरो सवाल है इला जी ओर हमें कई बार रोज इन सवालो से गुजरना पड़ता है.....सच जानिए दुःख में आकर ही आप को कई रिश्ते नाते समझ में आते है ....आपकी ममा का स्वास्थ्य शीघ्र ठीक हो यही दुआ है ...एक ओर बात लिखते वक़्त थोड़ा स्पेस रखे ओर बीच में paragragph ले तो पढने में ओर आसानी हो जाती है.......
आपकी ममा के शीघ्र स्वास्थय लाभ की कामना करता हूँ. अनेकों शुभकामनाऐं.
मुझे तो लगता है कि अस्पताल में भर्ती रोगियों की तुलना में वहाँ की व्यवस्था ज्यादा बीमार है। इस ओर सभी को ध्यान देना चाहिए।
आप मेरे ब्लॉग पर आयीं.
शुक्रिया. कविता और
शायरी के आलावा
अपनी बात कहने का
जुनून मुझे बचपन से रहा.
लिहाज़ा लिखने की राह
कम उम्र में ही
आसान हो गयी थी.
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बहरहाल प्रार्थना करता हूँ कि
आपकी मामा ज़ल्द से ज़ल्द
स्वस्थ हों....मेरा प्रणाम.
डा.चन्द्रकुमार जैन
आशा है माताजी और रवि दोनों ही अब स्वस्थ होंगे।
मैने भी अपने गाँव के सरकारी दवाखाने में यही हाल देखा है। गरीब मरीजों को बिना वजह फटकारती चिड़चिड़ी नर्सें, गंदे शौचालय, हर तरफ कचरा और बदबू..
achcha laga aapka blog padh ke
ईला जी, जो आपने देखा वो तो महज़ एक ट्रेलर है। पूरी फ़िल्म अगर आप देख लें तो आपके होश फ़ाख्ता हो जाएं। भगवान करे आप कभी भी ऐसी फ़िल्म न देखें, नहीं तो रात को सोना और दिन को खाना दूभर हो जाएगा। भगवान करे आपका मां और रवि दोनों स्वस्थ हो जाएं। और हां घर में अनार ज़रूर लाकर रखिएगा रवि के लिए देखना आकर कैसे चटर-पटर कर खाएगा। और हां जिस औरत का पित इतना धैर्यवान और समर्पित भाव हो वो औरत ज़्यादा दिन तक बीमार नहीं रह सकती। आपकी मां जल्दी ठीक हो जाएंगी। शुभकामनाएं
पहली बार आपको पढ़ा, बहुत अच्छा लगा, इंशाल्लाह अब आना जाना लगा रहेगा,आपकी ममा की सेहत के लिए बहुत सारी दुआओं के साथ...खुदा करे वो ठीक हों...आमीन
सबसे पहले तो ईश्वर से आपकी ममा के अति शीघ्र
स्वस्थ होने की प्रार्थना करता हूँ ! इश्वर उन्हें अच्छा
स्वास्थ्य देगा !
दुसरे आपने जो कुछ लिखा है वो सचाई है !
आपने बहुत अच्छा लिखा है ! बधाई !
इला जी
बहुत सच लिखा है आपने। बहुत सी बातें हम अपने अनुभव से ही जानते और समझते हैं। सरकारी अस्पतालों का हाल भी लगभग यही है। आम आदमी की पीड़ा को देखने और समझने का समय किसके पास है ? आपने इतनी बारीकी से इस सब को देखा और अनुभव किया यह शुभ संकेत है। माताजी और रवि शीग्र ही अच्छे हो जाएँगें। सस्नेह
aapki mummy jaldi se acchi ho jaaye bahut bahut shubhkaamanye
hope aunty is well now and so is ravi
बहुत देर से ये पोस्ट पढ़ रही हूँ और मन में प्राथना लिए हूँ कि अब तक रवि भला चंगा हो के घर लौट आया होगा और एक बार फ़िर से अनार का जायका उसे अच्छा लगता होगा।
हॉस्पिटल चाहे सरकारी हो या प्राइवेट, सब मन में अवसाद भरते हैं, सरकारी अस्पताल तो उसमें सबसे आगे रहते हैं।
पता नहीं किसको दोषी मानें, सरकारी मुलाजिमों के गैर जिम्मेदाराना सोच, उनकी अपनी मजबूरियां, या सरकार की ही उदासीन सोच्। जो भी हो गरीब को तो बिमार होने का भी हक्क नहीं।
आप ने सोचने पर मजबूर कर दिया है, रिटायर हो कर शायद यही करे, हॉस्पिटल में जा कर सबके हौसले बुलंद करें और उम्मीद जगायें।
वैसे आप की मम्मी की बिमारी क्या डाइगनोस हुई
आज पहली बार आपके ब्लोग पर आया। थोडा बहुत ही पढ पाया। समझ सकता हूँ आपकी परेशानी क्योंकि मैने भी अपनी बहन के ब्रेनटयूमर के कारण अस्पताल के दो तीन साल तक चक्कर खूब लगाऐ है। भगवान से दुआ करुँगा कि ममा जी की तबीयत जल्द ही ठीक हो जाऐ। आप लिखती रहे।
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